जीव विज्ञान शिक्षा : परंपरा, समसामयिक चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
वर्ष 1998-99 से कक्षा 9 में जीव विज्ञान विषय को स्वतंत्र रूप से समाप्त कर विज्ञान विषय में समाहित कर दिया गया। इस निर्णय के दूरगामी परिणाम हुए। जीव विज्ञान केवल एक शाखा नहीं है बल्कि यह जीवन के रहस्यों को समझने की आधारशिला है। जब विद्यार्थी कक्षा 9 में पहुंचते हैं, तब उनका मस्तिष्क जिज्ञासा और खोज की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है। जीव विज्ञान के पृथक विषय के रूप में अध्ययन से उनमें जीवन, प्रकृति, स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीव-जगत के प्रति संवेदनशीलता विकसित होती। लेकिन जब इसे एकीकृत कर दिया गया, तब उसकी गहराई और विषयगत विशिष्टता कहीं न कहीं प्रभावित हुई।
विज्ञान एक समग्र विषय है जिसमें भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान तीनों के तत्व होते हैं। किंतु प्रत्येक शाखा की अपनी पद्धति, अपनी भाषा और अपनी प्रयोगशाला-आधारित समझ होती है। जीव विज्ञान को अलग से पढ़ने का अर्थ केवल सैद्धांतिक जानकारी प्राप्त करना नहीं था, बल्कि प्रयोगशाला में प्रैक्टिकल करना, सूक्ष्मदर्शी से कोशिकाओं का अवलोकन करना, पादपों और जंतुओं की संरचना समझना और जीवन के विविध आयामों को करीब से देखना था। जब यह अवसर विद्यार्थियों से छीन लिया गया, तो उनकी खोजबीन की प्रवृत्ति और व्यावहारिक समझ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
इसका एक बड़ा नुकसान यह हुआ कि जिन विद्यार्थियों ने आगे चलकर जीव विज्ञान को उच्च शिक्षा स्तर पर अपनाया, उनके लिए आधार कमजोर हो गया। कक्षा 9 और 10 में जो गहरी नींव रखी जानी चाहिए थी, वह केवल सतही स्तर पर रह गई। परिणामस्वरूप कक्षा 11 में जीव विज्ञान लेने वाले विद्यार्थियों को अचानक विषय की गहराई से सामना करना पड़ा और बहुतों को यह कठिन और जटिल लगने लगा।
दूसरी ओर, इस निर्णय से विज्ञान का समग्र दृष्टिकोण अवश्य विकसित हुआ। विद्यार्थी एक ही विषय के अंतर्गत भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान की परस्परता को समझने लगे। उदाहरण के लिए, जीवन की रासायनिक प्रक्रियाओं या शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को केवल जीव विज्ञान नहीं बल्कि रसायन और भौतिकी के सहयोग से बेहतर समझा जा सकता है। इस दृष्टिकोण से विज्ञान शिक्षा अधिक एकीकृत और संतुलित प्रतीत होती है।
फिर भी यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी शाखा की विशिष्ट पहचान तभी बनती है जब उसे स्वतंत्र रूप से पढ़ाया जाए। जीव विज्ञान केवल विज्ञान का एक भाग नहीं बल्कि समाज और जीवन की प्रत्यक्ष समस्याओं से जुड़ा विषय है। स्वास्थ्य, पोषण, कृषि, पर्यावरण संरक्षण, रोग-निवारण और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र जीव विज्ञान की गहरी समझ पर आधारित हैं। जब विद्यार्थियों को शुरुआती स्तर पर ही यह विषय अलग से पढ़ने का अवसर मिलता, तो उनमें इन क्षेत्रों के प्रति रुचि और गहन समझ विकसित होती।
इस परिप्रेक्ष्य में यह भी ध्यान देने योग्य है कि शिक्षा केवल जानकारी भर देने की प्रक्रिया नहीं है। यह दृष्टिकोण, सोचने का तरीका और खोज की प्रवृत्ति विकसित करने का माध्यम है। यदि विद्यार्थी प्रारंभिक स्तर पर ही विषयों की गहराई से परिचित नहीं होंगे तो उनमें शोध और नवाचार की भावना का विकास कठिन हो जाएगा। यही कारण है कि शिक्षा शास्त्रियों और शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि जीव विज्ञान को स्वतंत्र विषय के रूप में पुनः बहाल किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थियों का समग्र और गहन विकास हो सके।
इस पूरे प्रसंग से यह निष्कर्ष निकलता है कि विषयों का एकीकरण तभी लाभकारी होता है जब उसकी संरचना और पद्धति इस प्रकार हो कि किसी भी शाखा की मौलिकता न खोए। यदि जीव विज्ञान को विज्ञान में समाहित करना ही है तो उसे उसी गंभीरता और प्रयोगात्मक दृष्टि से पढ़ाना आवश्यक है, जैसा कि स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाया जाता था। अन्यथा यह निर्णय विद्यार्थियों के भविष्य और राष्ट्र की वैज्ञानिक प्रगति दोनों के लिए बाधक सिद्ध हो सकता है।
सरकार के पास संसाधन सीमित हैं, यह हम सभी जानते हैं। परंतु उपलब्ध संसाधनों में ही न्यायसंगत अवसर देना संभव है। यही कारण है कि मेरी स्पष्ट मांग है—
PCM (Physics, Chemistry, Mathematics) वाले अभ्यर्थियों को गणित विषय में अवसर दिया जाए।
ZBC (Zoology, Botany, Chemistry) वाले अभ्यर्थियों को विज्ञान विषय में अवसर दिया जाए।
इससे शिक्षा व्यवस्था में न केवल न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी, बल्कि छात्रों की विषयगत दक्षता का भी सही उपयोग होगा। जब प्रत्येक समूह को उनके विशेषज्ञता क्षेत्र में अवसर मिलेगा, तब शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों की क्षमता दोनों ही बेहतर होंगी।
सरल शब्दों में, विज्ञान पृष्ठभूमि वाले को विज्ञान और गणित पृष्ठभूमि वाले को गणित — यही संतुलित और वैज्ञानिक समाधान है।
चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) में Biochemistry, Physiology और Endocrinology जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाए जाते हैं। किंतु लंबे समय तक इन विषयों के लिए पृथक अध्यापकों की उपलब्धता एक चुनौती रही। हाल ही में शिक्षा मंत्रालय का यह स्पष्ट दृष्टिकोण सामने आया है कि जिस अभ्यर्थी ने इन विषयों का अध्ययन किया है, वही इन्हें पढ़ाने के लिए पात्र है।
यही कारण है कि Zoology के विद्यार्थियों को इन विषयों में पूर्ण पात्रता मिलनी चाहिए, क्योंकि वे इनका गहन अध्ययन करते हैं और इनके स्वतंत्र प्रश्नपत्र भी उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा होते हैं। वस्तुतः Zoology स्नातक और स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने सदैव Biochemistry, Physiology, Endocrinology जैसे विषयों में दक्षता प्राप्त की है। इसी आधार पर यह कहना उचित है कि Zoology पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थी प्रारंभ से ही Medical Colleges में अध्यापन के लिए योग्य रहे हैं, केवल इसकी पर्याप्त मान्यता नहीं दी गई।
Zoology के विद्यार्थियों का प्रशिक्षण उन्हें न केवल सैद्धांतिक बल्कि प्रयोगात्मक दृष्टि से भी सक्षम बनाता है। उनके व्यावहारिक अनुभव इतने गहन होते हैं कि वे चिकित्सा से जुड़े प्रयोगों और प्रक्रियाओं में भी सहयोग देने में सक्षम होते हैं। यही कारण है कि उन्हें "आधे डॉक्टर" कहना अतिशयोक्ति नहीं है, बल्कि उनकी गहन विषयगत समझ का सम्मान है।
भविष्य में जब नई रिक्तियाँ आएँगी तो यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा कि क्या Zoology को यथोचित स्थान मिलता है। यह केवल अवसर देने का प्रश्न नहीं है, बल्कि विषयगत योग्यता और शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का भी प्रश्न है।
इसी प्रकार Engineering Colleges में भी गणित, रसायन विज्ञान, भौतिकी और Zoology पृष्ठभूमि के विद्यार्थी अध्यापन के लिए योग्य पाए गए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि विषयगत गहराई रखने वाले विद्यार्थियों को यदि उपयुक्त अवसर दिया जाए, तो वे शिक्षा व्यवस्था में उत्कृष्ट योगदान दे सकते हैं।
अविचल
avichal86@yahoo.com
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