भारत में लिव-इन रिलेशनशिप, वेश्यावृत्ति और सरोगेसी पर कानून की आवश्यकता

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप, वेश्यावृत्ति और सरोगेसी पर कानून की आवश्यकता
अविचल 
भारत में सामाजिक और नैतिक मूल्यों की जटिलता के बीच कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो लंबे समय से बहस का विषय बने हुए हैं, लेकिन उन पर स्पष्ट कानून न होने के कारण कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। वेश्यावृत्ति, लिव-इन रिलेशनशिप और सरोगेसी जैसे मुद्दे महिलाओं के अधिकारों, सामाजिक न्याय और कानूनी सुरक्षा से सीधे जुड़े हुए हैं। भले ही इन पर आंशिक कानूनी दिशा-निर्देश मौजूद हों, लेकिन स्पष्ट और व्यापक कानून न होने के कारण महिलाएँ शोषण का शिकार हो रही हैं।
1. वेश्यावृत्ति पर कानून: महिलाओं की सुरक्षा और न्याय
भारत में वेश्यावृत्ति को न तो पूर्ण रूप से वैध माना गया है और न ही अवैध। "अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956" (Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956 - ITPA) के तहत कुछ प्रावधान हैं, लेकिन यह पेशेवर यौन कर्मियों को सुरक्षा और कानूनी अधिकार प्रदान करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है।
वेश्यावृत्ति को लेकर प्रमुख समस्याएँ:
1. कानूनी अस्पष्टता – वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन इसे अपराध भी घोषित नहीं किया गया है, जिससे कानूनी भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
2. शोषण और मानव तस्करी – कानूनी स्पष्टता न होने के कारण दलाल, ग्राहक और पुलिस द्वारा यौन कर्मियों का शोषण किया जाता है।
3. स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा – यौन कर्मियों को स्वास्थ्य सेवाएँ, बीमा, पेंशन और अन्य सामाजिक लाभ नहीं मिलते।
4. न्याय तक पहुँच – जब उनके साथ हिंसा या अन्याय होता है, तो वे पुलिस या अदालत में अपनी बात नहीं रख पातीं, क्योंकि समाज उन्हें अपराधी मानता है।
वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देते हुए एक ऐसा ढाँचा तैयार किया जाए जिससे यौन कर्मियों के अधिकार सुरक्षित रहें।
स्वास्थ्य, बीमा और सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ लागू की जाएँ।
उनके साथ हिंसा या शोषण करने वालों को सख्त सजा दी जाए।
2. लिव-इन रिलेशनशिप: अधिकार और कानूनी संरचना
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है, लेकिन न्यायपालिका ने कुछ महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट ने इसे वयस्कों के बीच आपसी सहमति पर आधारित संबंध माना है, लेकिन इससे उत्पन्न होने वाली कानूनी जटिलताएँ अब भी बनी हुई हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप से उत्पन्न समस्याएँ:
1. महिलाओं और बच्चों के अधिकार – यदि पुरुष रिश्ता खत्म कर देता है, तो महिला को कानूनी संरक्षण नहीं मिलता और बच्चों के भविष्य को लेकर भी अनिश्चितता बनी रहती है।
2. गुजारा भत्ता का विवाद – हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू किया है, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप खत्म होने पर गुजारा भत्ता का प्रावधान किया गया है। लेकिन इससे रिश्तों में जटिलता बढ़ सकती है, क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप और विवाह में अंतर होता है।
3. समाज में स्वीकृति और नैतिक प्रश्न – लिव-इन रिलेशनशिप को समाज में पूर्ण स्वीकृति नहीं मिली है, जिससे कानूनी मामलों में भेदभाव देखने को मिलता है।
लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी रूप से परिभाषित किया जाए ताकि महिलाओं और बच्चों के अधिकार स्पष्ट हों।
यदि लिव-इन से कोई संतान जन्म लेती है, तो उसे पूरी कानूनी पहचान और अधिकार मिले।
गुजारा भत्ता का कानून विवाह की तरह लिव-इन रिलेशनशिप पर लागू करना उचित नहीं है, क्योंकि दोनों में अंतर है।
यदि विवाह के वादे के साथ यह रिश्ता निभाया जा रहा है तो रिश्ता तोड़ने के बाद भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 69 के तहत मुकदमा भी पंजीकृत होगा। 
3. सरोगेसी कानून: मातृत्व का अधिकार और नैतिकता
सरोगेसी (किराए की कोख) भारत में एक संवेदनशील मुद्दा है। "सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021" के तहत केवल परोपकारी सरोगेसी (Altruistic Surrogacy) की अनुमति है, जिसमें सरोगेट माँ को केवल चिकित्सा खर्च और बीमा कवर दिया जाता है। व्यावसायिक सरोगेसी (Commercial Surrogacy) को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
सरोगेसी से संबंधित समस्याएँ:
1. आर्थिक अवसरों पर रोक – व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने से उन महिलाओं के लिए आजीविका के अवसर खत्म हो गए हैं, जो इसे सहमति से अपनाना चाहती थीं।
2. कानूनी प्रक्रिया की जटिलता – सरोगेसी कानून इतने जटिल हैं कि इच्छुक दंपतियों और सरोगेट माताओं के लिए इसे अपनाना कठिन हो गया है।
3. अकेली महिलाओं और LGBTQ+ समुदाय के लिए असमानता – यह कानून केवल विवाहित पुरुष और महिला को ही सरोगेसी की अनुमति देता है, जिससे कई अन्य वर्ग वंचित रह जाते हैं।
सरोगेसी कानून में संशोधन कर व्यावसायिक सरोगेसी को नियंत्रित रूप से अनुमति दी जाए।
एकल माता-पिता और अन्य वर्गों को भी सरोगेसी का अधिकार मिले।
सरोगेट माताओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी प्रणाली विकसित की जाए।
भारत में वेश्यावृत्ति, लिव-इन रिलेशनशिप और सरोगेसी से जुड़े कानूनी पहलुओं पर स्पष्टता की आवश्यकता है। इन विषयों पर कानून का उद्देश्य लोगों को इन कार्यों के लिए प्रोत्साहित करना नहीं, बल्कि पहले से इसमें शामिल व्यक्तियों को न्याय दिलाना होना चाहिए। यदि इन मुद्दों पर संतुलित और व्यावहारिक कानून बनाए जाएँ, तो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य वर्गों को सुरक्षा और न्याय मिल सकता है।
मैं वर्ष 2005 में मुक्त मीडिया पर फ्रेंजो के माध्यम से आया। वर्ष 2007 में मुंबई महानगर में स्त्रियों की दशा देखकर मेरे मन में विचार आया कि भले ही भारत में वेश्यावृत्ति, लिव इन रिलेशनशिप और सरोगेसी मदर के विषय में स्पष्ट कानून नहीं है परंतु यह सब कार्य धड़ल्ले से हो रहा है और इससे स्त्रियों को बहुत समस्या होती है। उनको न्याय नहीं मिल पाता है। इसलिए तब से मैं मांग कर रहा हूं कि इन तीनों विषय पर स्पष्ट कानून बनना चाहिए। कानून का उद्देश्य इस कार्य को करने के लिए प्रेरित करना न हो अपितु जो इस कार्य में लिप्त हैं उनको न्याय दिलाना हो। फेसबुक पर वर्ष 2011 में आने के बाद भी मैं यह मुद्दा उठाया। उत्तराखंड सरकार ने यूनिफार्म सिविल कोड कानून लागू किया तो उसमें लिव इन रिलेशनशिप को लेकर भी प्राविधान है। उत्तराखंड सरकार ने रिश्ता खत्म करने के बाद गुजारा भत्ता का जो प्राविधान किया है इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे रिश्ते में जटिलता उत्पन्न होगी। उनसे उत्पन्न बच्चों को सिर्फ बच्चों जैसा पूरा अधिकार मिलना चाहिए।

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