72825 शिक्षक भर्ती का इतिहास

72825 शिक्षक भर्ती 

आरटीई एक्ट सेक्शन 23(2) में यह वर्णित है कि यदि संसाधन का अभाव है तो राज्यों को छूट दी जाएगी।

23 अगस्त 2010 को एनसीटीई ने नोटिफिकेशन के पैराग्राफ 3 में लिखा कि जहां बीटीसी प्रशिक्षु नहीं मौजूद हैं वहां बीएड को 1 जनवरी 2012  तक नियुक्त करके छः महीने का प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र में प्रशिक्षण दिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में 27 सितंबर 2011 को 72825 भर्ती का शासनादेश आया। 

1 जनवरी 2012 को बीएड को नियुक्त करने की तिथि समाप्त हो रही थी इसलिए शीघ्र भर्ती के लिए 9 नवंबर 2011 को बेसिक शिक्षा नियमावली में 12वा संशोधन करके टीईटी मेरिट को चाय का आधार बना दिया गया।

13 नवंबर 2011 को यूपी बोर्ड ने टीईटी की परीक्षा कराई। 

25 नवंबर 2011 को टीईटी का परिणाम जारी हुआ। 

परीक्षा में धांधली को लेकर यूपी बोर्ड के निदेशक संजय मोहन जेल गए। 

30 नवंबर 2011 को 72825 का विज्ञापन आया। जिसमें किसी भी पांच जिले में आवेदन की छूट दी गई।

मात्र 5 जिले का आवेदन का नियम बेसिक शिक्षा नियमावली ने न होने के कारण हाई कोर्ट ने 5 जिले के आवेदन की प्रक्रिया को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया।

20 दिसंबर 2011 को किसी एक जिले की डीडी की छाया प्रति लगाकर सभी जिलों में आवेदन की छूट प्रदान की गई।

आवेदन की अंतिम तिथि 9 जनवरी 2012 थी।

बीएसए की बजाय सचिव द्वारा विज्ञापन जारी होने के कारण कपिल देव यादव की याचिका पर हाई कोर्ट ने 4 जनवरी 2012 को भर्ती पर स्टे कर दिया।

अखिलेश यादव ने चुनावी रैली में कहा कि टीईटी परीक्षा में धांधली हुई है इसलिए सत्ता में आने पर टीईटी 2011 को रद्द कर देंगे। 

समाजवादी पार्टी सत्ता में आई 15 मार्च 2012 को शपथ ग्रहण कार्यक्रम हुआ। 

20 मार्च 2012 को लखनऊ में टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों ने विशाल धरना प्रदर्शन किया। पुलिस ने  लाठीचार्ज किया और गंभीर चोटें आईं।

टीईटी को लेकर मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी बनी। कमेटी ने रिपोर्ट दिया कि टीईटी रद्द न किया जाए और चयन का आधार बदल दिया जाए। 

31 जुलाई 2012 को बेसिक शिक्षा नियमावली में संशोधन पंद्रहवां करके चयन का आधार एकेडमिक कर दिया। 

सरकार ने 30 दिसंबर 2011 का विज्ञापन वापस ले लिया। 

विज्ञापन की बहाली के लिए अखिलेश त्रिपाठी ने हाई कोर्ट में मुकदमा किया। 

बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में दिनांक 5 दिसंबर 2012 को सोलहवां संशोधन हुआ एवम बीएड के प्रशिक्षु शिक्षक का कैडर बना। बीएड के लिए चयन का आधार बीएड के प्रतिशत का तीस फीसदी कर दिया गया। 

7 दिसंबर 2012 को एकेडमिक मेरिट पर 72825 पदों पर नया विज्ञापन आया। 

20 जनवरी 2013 को पुराने विज्ञापन को बेसिक शिक्षा नियमावली के अनुसार न होने के कारण हाई कोर्ट के जस्टिस अरुण टंडन ने बहाल करने से इंकार कर दिया। 
नए विज्ञापन को हरी झंडी दिखा दी ।

4 फरवरी 2013 को नए विज्ञापन की काउंसलिंग हो रही थी। नवीन श्रीवास्तव की स्पेशल अपील पर शशि नंदन और अभिषेक श्रीवास्तव की बहस पर जस्टिस सुशील हरकौली और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने नए विज्ञापन की काउंसलिंग पर रोक लगा दी। 

अंतरिम आदेश ने कोर्ट ने कहा कि चाहे पहले नियुक्ति होती तब ट्रेनिंग होती या पहले ट्रेनिंग होती तब नियुक्ति होती बनाए टीचर ही जाते।

हाई कोर्ट में लंबे समय तक सुनवाई चलती रही। 

बीच में नॉन टीईटी और टीईटी वेटेज का मामला आया और लार्जर बेंच द्वारा मामला निपटने के बाद सभी मामले पुनः दो न्यायमूर्तियों की पीठ को भेज दिए गए।

दिनांक 20 नवंबर 2013 को न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति विपिन सिन्हा की पीठ ने स्पेशल अपील का निपटारा किया।
दिनांक 30 नवंबर 2011 के टीईटी मेरिट के विज्ञापन को बहाल कर दिया और दिनांक 7 दिसंबर 2012 के एकेडमिक मेरिट के विज्ञापन को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि पुराने विज्ञापन का सिर्फ नाम प्रशिक्षु शिक्षक था लेकिन प्रक्रिया सहायक अध्यापक जैसी होती।
जबकि नया विज्ञापन चयन में टीईटी के अंक को महत्व नहीं दे रहा है इसलिए इसे बहाल करना उचित नहीं है।

राहुल पांडे ने कहा कि जबकि पुराने विज्ञापन में सिर्फ चयन का आधार टीईटी मेरिट थी। बाकी वो विज्ञापन बीटीसी अथवा एसबीटीसी के प्रशिक्षण कराने जैसा था। महिला, पुरुष , कला, विज्ञान और शिक्षामित्र की अलग अलग चयन सूची बन रही थी। जो कि नियमावली में नहीं है। 

राहुल पांडे के अनुसार उन्होंने टीईटी परीक्षा बचाने और पुराना विज्ञापन टीईटी मेरिट से हो इसके लिए संघर्ष किया था। जब सरकार ने पुराना विज्ञापन वापस ले लिया तो नया विज्ञापन टीईटी मेरिट से हो एवम जो धांधली में शामिल थे उनको बाहर करने की मांग की थी। परंतु नया विज्ञापन एकेडमिक मेरिट से होने के कारण न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवम न्यायमूर्ति विपिन सिन्हा की कोर्ट में पुराने विज्ञापन की कमी को उजागर नहीं किया परंतु आदेश आने के बाद नियमावली से टीईटी मेरिट से भर्ती की मांग करना शुरू कर दिया। 

हाई कोर्ट की दो न्यायमूर्ति के फैसले के विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी 1874-1902 ऑफ 2014 फाइल की। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 25 मार्च 2014 को मुकुल रोहतगी ने बहस की। 
न्यायमूर्ति एच एल दत्तू हाई कोर्ट के आदेश को अंतरिम रूप से बहाल रखा और कहा कि सबकी नियुक्ति याचिका के अंतिम निर्णय के आधीन रहेगी।

नए विज्ञापन से आवेदन करने वाले एकेडमिक मेरिट समर्थकों ने कपिल देव यादव आदि के नाम से एसएलपी दाखिल की थी जिसपर राकेश द्विवेदी ने बहस किया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को सिविल अपील 4347-4375  ऑफ 2014 में कनवर्ट कर दिया।

पुराने विज्ञापन के समर्थकों के अनवरत प्रयास के बाद सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से काउंसलिंग प्रक्रिया प्रारंभ हुई। 

अलग अलग चयन सूची के कारण चयन सूची में बहुत विसंगति रही। एकेडमिक टीम ने मामले में सुनवाई का प्रयास जारी रखा और अलग अलग चयन सूची के कारण राहुल पांडे ने भी शीघ्र सुनवाई का प्रयास किया।

17 दिसंबर 2014 को न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की बेंच में सुनवाई हुई तो  काउंसलिंग की विसंगति को देखकर उन्होंने पहले अनारक्षित के  75 फीसदी टीईटी अंक और आरक्षित के लिए  70 फीसदी टीईटी अंक का कट ऑफ बनाना चाहा तो सीनियर एडवोकेट  राकेश द्विवेदी और सीनियर एडवोकेट विकास सिंह की मांग पर पांच फीसदी अंक और कम करके 70 और 65 फीसदी कर दिया एवम आरक्षण नियमों से चयन करने को कहा।

17 दिसंबर 2014 के आदेश के अनुपालन में मात्र जिसका कट ऑफ 70/65 फीसदी से कम था। अर्थात टीईटी अंक जनरल 105 अंक आरक्षित 97 अंक से कम था उनका चयन नहीं किया ।
शेष आरक्षण में सुधार नही किया।

25 फरवरी 2015 को स्टेटस रिपोर्ट में आरक्षित का कट ऑफ 60 फीसदी करने की मांग की गई तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 65 फीसदी के ऊपर समस्त आरक्षित का चयन हो गया हो तो 60 फीसदी तक अर्थात 90 अंक तक के आरक्षित का चयन किया जा सकता है। 

इस तरफ कई सुनवाई में अनवरत रिक्त पद का ब्यौरा विभाग देता रहा। 

अलग अलग चयन सूची के विरुद्ध भी एसएलपी इस मामले से कनेक्ट हुई।

दिनांक 2 नवंबर 2015 को बेसिक शिक्षा विभाग ने अनारक्षित के कट ऑफ को 70 फीसदी से कम करने की मांग की। जिससे कि बचे हुए पद को भरा जा सके। 

राहुल पांडे ने इसका विरोध किया और कहा कि उनका 115 अंक है। हर जनपद में आवेदक हैं। कोर्ट ने प्रत्यावेदन लेकर समस्या के निस्तारण का आदेश कर दिया। 

07 दिसंबर 2015 को सरकारी वकील ने बताया कि कुल 14640 पद रिक्त हैं। कुल 75000 प्रत्यावेदन आए हैं जिसमें कि 12091 लोग पात्र हैं। वह किसी न किसी जनपद की चयन सूची में आ रहे हैं। 
2549 पद रिक्त बच रहा है।

राकेश द्विवेदी ने मांग किया कि उनके क्लाइंट एकेडमिक मेरिट के आवेदक हैं। उनको नियुक्त कर दिया जाए। 
परंतु कोर्ट ने मात्र राहत देने की बजाय कोर्ट में मौजूद सभी वकील के क्लाइंट को मौका देने को कहा।
कुल 1100 की संख्या जोड़ी गई।

AAG गौरव भाटिया ने सबको नियुक्त करने की सहमति दे दी। 

कुल 862 लोगों ने दावा किया और 841 लोगों ने नियुक्ति प्राप्त किया।

12091 की सूची अब तक प्रकाशित नही हुई। राहुल पांडे ने कहा कि यदि विवाद खत्म करना हो तो 12091 लोग की एक मिश्रित सूचित आरक्षण का पालन करते हुए जारी कर दी जाए जिससे उस सूची में कोई अधिक अंक वाला बाहर न रहे।
परंतु 8 फरवरी 2016 को जब 12091 की सूची जारी हुई तो विरोध शुरू हो गया। कम अंक वाले सूची में थे और अधिक वाले बाहर थे। 

सचिव ने जिन 60909 लोग को प्रत्यावेदन ने अपात्र कहा था उनको भी मौका दे दिया और परिणामस्वरूप 12091 से मात्र 391 लोग ही चयन पा सके।

58135 पद भरा हुआ था उसके बाद 391 लोग 12091 की सूची से नियुक्त हुए। याची सहित कुल 66655 लोग का चयन हुआ।

1100 याची के मामले में 7 दिसंबर 2015 के आदेश के बाद याचियों की पूरी भीड़ लग गई।

न्यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने 24 फरवरी 2016 को नए याचियों पर भी विचार करने को कहा परंतु रिक्ति न होने का हवाला देकर और याचियों की नियुक्ति नहीं की। 

शिक्षामित्र विवाद समेत कई भर्तियों का विवाद सर्वोच्च न्यायलय पहुंचा और 72825 भर्ती के विवाद में कनेक्ट हो गया। 

वर्ष 2017 में व्यापक सुनवाई हुई। राकेश द्विवेदी के याची सब नियुक्ति पा चुके थे।  भानु यादव ने पुराने विज्ञापन के विरुद्ध बहस में पल्लव सिसोदिया को उतारा । कोर्ट में यह सिद्ध हुआ कि पुराना विज्ञापन नियमावली पर नहीं था तो अंतरिम आदेश से कुल 66655 लोग की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित कर दिया। बचे हुए 6170 पद को राज्य के ऊपर छोड़ दिया गया।

नए विज्ञापन का चयन का आधार बहाल हुआ तो उसे भी राज्य पर छोड़ दिया गया। जिसकी फीस वापस करने का निर्णय सरकार ने लिया।

दिनांक 25 जुलाई 2017 को अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था।

पिछले 7 वर्ष से अनवरत मुकदमे हो रहे हैं मगर किसी को कोई राहत नहीं मिली।

12091 पर हाई कोर्ट में 2018 में मुकदमा हुआ तो एकल पीठ ने प्रत्यावेदन निस्तारण का आदेश किया।

सुप्रीम कोर्ट में 12091 को नियुक्त करने को अवमानना याचिका हुई तो उसे भी न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति यूयू ललित के सेवानिवृत होने के बाद 12091 के लोगों ने खुद 66655 की सूची के अंदर बताकर नियुक्ति पत्र देने की मांग की। दिनांक 27 सितंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में अपनी बात रखने को कहा।

हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमसेरी ने कहा कि जिनकी काउंसलिंग न हुई हो उसकी काउंसलिंग कराई जाए। 

सरकार स्पेशल अपील में गई तो न्यायमूर्ति अश्वनी मिश्रा ने एकल पीठ के फैसले को रद्द कर दिया।

12091 के लोग सुप्रीम कोर्ट गए और दिनांक 6 मई 2024 को 12091 की एसएलपी खारिज हो गई।

1100  याची में 238 याचियों की नियुक्ति नहीं हुई क्योंकि उनके लिए किसी वकील का वकालतनामा नहीं लगा था। 
24 फरवरी 2016 के पूर्व के याची जिनपर कोर्ट ने विचार करने को कहा था। इन्होंने अवमानना याचिका की है। मगर 12091 की एसएलपी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इनकी भी स्थिति समझ ली है। 66655 लिस्ट  में 1100 याची में  मात्र 862 को ही जोड़ा गया है। 24 फरवरी 2016 के याचियों पर विचार करने के आदेश को 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर चुकी है। 
12091 पर जस्टिस अश्विनी मिश्रा के आदेश को पढ़कर सुप्रीम कोर्ट में 72825 भर्ती मामले में किसी वकील को सुना जाना मुश्किल है। 
नया विज्ञापन के आवेदक नए विज्ञापन के लिए आज भी लड़ रहे हैं। 
इनका परिणाम भी सर्वविदित है लेकिन जनभावनाओं से जुड़ा मुद्दा होने के कारण मैं टिप्पणी नहीं करता हूं मगर 72825 का अंतहीन मुकदमा आज तक तक अंतिम नहीं हुआ है जबकि परिणाम हृदय को पीड़ा देने वाला है।

राहुल पांडे 'अविचल'
@RahulGPande

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