रूस, जर्मनी और चीन की कूटनीति से धराशायी हुए अमेरिका सहित नाटो देश

रूस, जर्मनी और चीन की कूटनीति से धराशायी हुए अमेरिका सहित नाटो देश 

यूक्रेन पूर्ववर्ती सोवियत संघ रूस का हिस्सा था। रूस हमेशा कहता है कि यूक्रेन के लोग रूसी हैं और रूस यूक्रेन की भूमि और उसके लोग को खुद से अलग नहीं करना चाहता है। विक्टर यानुकोविच के यूक्रेन का राष्ट्रपति बनने के बाद रूस यूक्रेन में बहुत मजबूत हो गया था। ब्रिटेन और अमेरिका ने यूक्रेन में विरोध करवाकर विक्टर यानुकोविच को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। जिसके बाद रूस ने यूक्रेन के प्रायद्वीप क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और औद्योगिक शहर डोनबास में लंबे समय से यूक्रेन की सेना और अलगाववादियों में युद्ध चल रहा है। रूस अलगाववादियों को हथियार और धन उपलब्ध कराता है लेकिन कहता है कि वे रूसी स्वयंसेवक हैं, इस युद्ध में रूस अपनी भूमिका स्वीकार नहीं करता है। यूक्रेन नाटो देश का सदस्य बनने को उत्सुक रहता है जो कि रूस को नागवार लगता है क्योंकि रूस अपनी सीमा पर नाटो देश की सेना को नहीं देखना चाहता है। नाटो का गठन वर्ष 1949 में सोवियत संघ रूस की शक्ति का सामना करने के लिए ही हुआ था। वस्तुतः नाटो देश ने भरोसा दिलाया कि वे रूस का नुकसान नहीं करेंगे परंतु दूध का जला रूस अब मट्ठा भी फूंककर ही पियेगा। जर्मनी और रूस में गैस व्यापार का मामला है और दोनों देश डॉलर की बजाय रूबल में व्यापार करते हैं। रूसी जासूसों को जहर देने का मामला अतीत का विषय हो गया है। अमेरिका को खुन्नस है कि रूस डॉलर में आदान प्रदान क्यों नहीं करता है। दुनिया के दस फीसदी कच्चे तेल पर रूस का कब्जा है। अमेरिका और नाटो देश यूक्रेन के जरिए रूस को उकसाया करते थे कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो रूस की खैर नहीं होगी। अमेरिका की बातों से यूक्रेन भी खुद को मजबूत समझने लगा था। जर्मनी ने अमेरिका को गफलत में रखा। एक तरफ वह रूस को अपनी सेना वापस लेने को कहता है तो दूसरी तरफ अंदरखाने से रूस से मिला हुआ है। चीन की चुप्पी मात्र दुनिया के लिए चुप्पी दिख रही थी लेकिन अंदर से चीन ने रूस को मौन सहमति दी है। अंततः रूस ने युद्ध का बिगुल बजा दिया। अमेरिका और नाटो देश देखते ही रख गए। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने रूस पर टिप्पणी किया तो रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि ब्रिटेन शांत रहे वरना उसे हम यूरोप के नक्से से ही मिटा देंगे। ब्रिटेन भी मौन हो गया और नाटो देश बैठक में ही व्यस्त हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का कहीं अता पता ही नहीं है। जल्द ही यूक्रेन हथियार डाल देगा और युद्ध समाप्त हो जाएगा परन्तु रूस ने खुद का खोया हुआ अस्तित्व बहुत हद तक प्राप्त कर लिया है। युद्ध के परिणामस्वरूप मंहगाई में बेतहाशा वृद्धि होगी और विकसित देश इसका लाभ उठाएंगे। नाटो की नौटंकी से यूक्रेन को नुकसान हुआ। अंदरखाने से यह अमेरिका के विरुद्ध बड़ी कूटनीतिक लड़ाई थी। रूस अपने व्यापारिक सम्बन्ध भी अपने हिसाब से चलाने में सफल हो सकता है। रूस ने स्पष्ट रूप से संदेश दिया कि यूक्रेनी सैनिक हथियार डाल दें। रूस का इरादा यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं है। जिसे यूक्रेन की जनता चाहेगी वही यूक्रेन का राष्ट्रपति बनेगा। रूस ने कहा कि यूक्रेन के नागरिक मेरे नागरिक हैं, उनका नुकसान रूस का नुकसान होगा।

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