“सीनियर शिक्षकों की सेवा सुरक्षा और पदोन्नति में TET”
अविचल
एनसीटीई ने RTE एक्ट 2009 के सेक्शन 23(2) के परन्तुक की परवाह न करते हुए RTE एक्ट 2009 के सेक्शन 23(1) में मिली शक्ति के बल पर 23/08/2010 के नोटिफिकेशन के पैरा एक में न्यूनतम योग्यता निर्धारित की। इसके अनुसार दिनांक 23/08/2010 के पूर्व नियुक्त हो चुके शिक्षकों को पैरा 4 में न्यूनतम योग्यता धारण करने से मुक्त किया गया और पैरा 5 में दिनांक 23/08/2010 के पूर्व जारी हो चुके विज्ञापनों को NCTE के विनियम, 2001 से जारी रखने का निर्णय लिया गया।
इसके बाद वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने एनसीटीई को और मजबूत बना दिया। NCTE ने सुपर सीनियर शिक्षक और सीनियर शिक्षक को RTE के दायरे में धीरे-धीरे लाने का प्रयास किया, क्योंकि NCTE RTE एक्ट लागू होने के पूर्व नियुक्त और विज्ञापित शिक्षकों के प्रति सहानुभूति रखती थी तथा उन्हें RTE एक्ट के कठोर नियमों से बचाए रखना चाहती थी। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 16 से सुरक्षित किसी शिक्षक की सेवा पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाना चाहती थी।
मगर जब NCTE ने दिनांक 12/11/2014 के नोटिफिकेशन के पैरा 4(बी) में सुपर सीनियर शिक्षक और सीनियर शिक्षक को भी पदोन्नति में जिस संवर्ग का पद वे धारण कर रहे थे उसके लिए NCTE के नोटिफिकेशन 23/08/2010 के पैरा एक में निर्धारित योग्यता को धारण करने का निर्णय लिया, तो तमिलनाडु सरकार और वहां के सुपर सीनियर शिक्षक तथा सीनियर शिक्षक बिगड़ गए और कहा कि NCTE के नोटिफिकेशन 23/08/2010 के पैरा 4 और 5 में उन्हें राहत दी गई है। साथ ही उनका अपना सर्विस रूल है। वे नियुक्ति तो टीईटी से करेंगे मगर पदोन्नति बिना टीईटी होगी।
अर्थात जिस NCTE ने उनके लिए RTE एक्ट 2009 के सेक्शन 23(2) के परन्तुक को नकारकर दिनांक 23/08/2010 के नोटिफिकेशन में पैरा 4 और 5 बनाया था, उसी एनसीटीई के नोटिफिकेशन 12/11/2014 के पैरा 4(बी) को सीनियर शिक्षक और सुपर सीनियर शिक्षक मानने को तैयार नहीं थे।
जिसके परिणामस्वरूप NCTE ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एनसीटीई नोटिफिकेशन 23/08/2010 के पैरा 4 और 5 को अपने उसी नोटिफिकेशन के पैरा एक से जोड़कर नहीं पढ़ा। परिणामस्वरूप RTE एक्ट सेक्शन 23(2) के परन्तुक ने NCTE के 23/08/2010 के नोटिफिकेशन के पैरा 4 और 5 को प्रभावहीन कर दिया।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करके सुपर सीनियर शिक्षक को सेवा में बने रहने के लिए टीईटी से मुक्त कर दिया, जिनकी सेवा केवल पाँच वर्ष शेष थी। परंतु इन सुपर सीनियर शिक्षकों को भी पदोन्नति में टीईटी से मुक्त नहीं किया गया।
इस तरह सीनियर शिक्षक, एनसीटीई के नोटिफिकेशन 23/08/2010 के पैरा 4, 5 और एनसीटीई के नोटिफिकेशन 12/11/2014 के पैरा 4(बी) को एनसीटीई के नोटिफिकेशन 23/08/2010 के पैरा एक के साथ पढ़वाकर खुद को RTE एक्ट सेक्शन 23(1) से कवर करके सेवा में बने रहने के लिए टीईटी से मुक्त होने का प्रयास कर सकते हैं। लेकिन यदि एनसीटीई के नोटिफिकेशन 12/11/2014 के पैरा 4(बी) की अनदेखी करेंगे तो एनसीटीई उनका बचाव करने में असमर्थ हो जाएगी, क्योंकि तब वह कैसे सिद्ध करेगी कि वह उन्हें पदोन्नति के जरिए RTE एक्ट के दायरे में धीरे-धीरे ला रही है।
इसलिए सेवा में बिना टीईटी बने रहने के लिए पदोन्नति में टीईटी स्वीकार करना सीनियर शिक्षकों की विधिक मजबूरी है।
सुपर सीनियर शिक्षक जिनकी सेवा पाँच वर्ष ही शेष है, सेवा में बने रहने के लिए टीईटी से मुक्त हो गए हैं, मगर पदोन्नति के लिए टीईटी देकर पदोन्नति पा सकते हैं।
देश के जो भी शिक्षक पदोन्नति में टीईटी चाहते हैं, वे बिना टीईटी सेवा में बने रहने के पक्षधर हैं। मैं तो मद्रास उच्च न्यायालय के जजमेंट के पहले चाहता था कि जिनकी नियुक्ति 23/08/2010 के पहले हुई है या जिनका विज्ञापन 23/08/2010 के पहले आ चुका है, उनकी नियुक्ति बाद में भी हुई हो तो उन्हें पदोन्नति में भी टीईटी से मुक्त रखा जाए।
मगर तमिलनाडु मामले के माननीय मद्रास हाईकोर्ट के जजमेंट के बाद मेरे चाहने के बावजूद यह संभव नहीं था, क्योंकि तब एनसीटीई ने ही पदोन्नति में इन पर टीईटी लागू करने का दिनांक 11/09/2023 को पत्र जारी कर दिया और माननीय सर्वोच्च न्यायालय में उनकी सेवा पर ही प्रश्नचिह्न लग गया।
तमिलनाडु के इन्हीं पदोन्नति में टीईटी समर्थकों ने सुपर सीनियर शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए टीईटी से मुक्त कराने में अपनी भूमिका अदा की।
अब समस्त सीनियर शिक्षक एनसीटीई के सभी नोटिफिकेशन से अपनी सेवा सुरक्षित करने का प्रयास करें, ताकि एनसीटीई ने किसी भी माननीय उच्च न्यायालय की एकल पीठ में जो कहा है वही माननीय सर्वोच्च न्यायालय में भी कह सके।
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