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Showing posts from March, 2022

हमारा बचपन और गौरैया

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हमारा बचपन और गौरैया  बचपन में गौरैया हमारे जीवन का हिस्सा थी। नर और मादा दोनों तरह की गौरैया पायी जाती थी। इनका घोसला जो कि घास फूस का होता था। कच्चे मकान में इन्हें घोसला बनाने में सुगमता होती थी। सुबह-सुबह आंगन में दाना फेंक दिया था। जब ये आकर दाना चुंगती थी तो बहुत अच्छा लगता था। कभी-कभी इनके बच्चे मिल जाते थे तो उन्हें पकड़ने की इच्छा होती थी। मगर जब यह बताया जाता कि इनको छूने से इनकी माँ इन्हें बहिष्कृत कर देगी तो फिर इनसे दूरी बना ली जाती थी। समय के साथ मोबाइल टावर की तरंगों ने इनकी राह चलने की क्षमता छीन ली। प्रदूषण से इनका नुकसान होने लगा। पक्के मकानों ने इनके रहने की व्यवस्था छीन ली। नुकीले पौधों पर ये घोंसले नहीं बना पाती थीं। अब तो शहरों से बिल्कुल विलुप्त हो चुकी हैं। गांव में भी अब इन्हें विलुप्त देखा जा रहा है। आज हम अपने बच्चों को गौरैया का एहसास नहीं दिला सकते हैं। मगर गौरैया की यादें हमें अपने बचपन की याद दिला रहीं हैं।  जिसे भी गौरैया दिखे उन्हें बचाने की कोशिश होनी चाहिए। उनकी रक्षा होनी चाहिए। अब तो बस इनकी यादें वर्ष में एक दिन के लिए सीमित कर दी गयी हैं।...

सियासत में ओपी राजभर और संजय निषाद के मायने

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सियासत में ओपी राजभर और संजय निषाद के मायने  राहुल पांडे 'अविचल' उत्तर प्रदेश की सियासत में ओपी राजभर और संजय निषाद की भूमिका एक समुदाय तक सीमित है। राजनैतिक विश्लेषक कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति से जातिवाद खत्म हो गया है जबकि ओपी राजभर, संजय निषाद और पटेल बहनों की सफलता ने एक नए विश्लेषण को जन्म दिया है। जेएच हट्टन की समिति ने कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ को अछूत न मानते हुए इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया था। आजादी के बाद कुछ समय तक इन्हें अनुसूचित जाति का लाभ मिला परंतु बाद में अनुसूचित जाति से हटा दिया गया। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम के करीबी ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व में इन जातियों ने संघर्ष किया और ओबीसी आरक्षण लागू होने के बाद वर्ष 1997 में इन्हें ओबीसी में शामिल कर लिया गया। ओबीसी की सबल जातियों के कारण इन जातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका। जिसके कारण ओम प्रकाश राजभर ने इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की मांग कर...

राजनीति के मौसम वैज्ञानिक

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राजनीति के मौसम वैज्ञानिक अक्सर सुनने को मिलता है कि अमुक नेता मौसम वैज्ञानिक है, वह जिस तरफ जाते हैं, उसकी सरकार बन जाती है।  राजनीति में दो तरह के दृश्य देखने को मिलते हैं। पहला दृश्य नेता जिस तरफ का रुख करते हैं, जनता उस तरफ का रुख कर लेती है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी जी के प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनते ही जनता बीजेपी की तरफ चली गयी।  दूसरा दृश्य जनता जिस तरफ रुख करती है नेता उस तरफ ही जाने लगते हैं। ऐसे ही नेता को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहते हैं, उदाहरण के तौर पर जनता का रुख भांपकर रामबिलास पासवान जी उसी पार्टी के साथ गठबंधन कर लेते थे।